राष्ट्रीय एकता के लिए आज के दौर में अधिक प्रासंगिक हैं महात्मा ज्योतिबा राव फूले की शिक्षाएं

संजीव भारती / पारदर्शी विकास न्यूज़ अमेठी।सामाजिक भेदभाव, जातीय उत्पीड़न और अशिक्षा के विरुद्ध जीवन भर लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा राव फूले,अब दक्षिण भारत ही नहीं उत्तर भारत में भी सामाजिक जीवन के प्रमुख अंग बन गए हैं।

महात्मा ज्योतिबा राव फूले को संविधान निर्माता बोधिसत्व बाबा साहब डॉ अम्बेडकर का गुरु माना जाता है।यह संयोग ही है कि डॉ अम्बेडकर की जयंती फूले जयंती के तीन दिन बाद 14अप्रैल को आती है। बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के साथ ही भारतीय समाज अब उनके गुरु को भी सम्मान जनक तरीके से याद करने लगा है।महात्मा ज्योतिबा राव फूले ऐसे पहले समाज सुधारक हैं जिन्होंने भारतीय समाज में सबसे पहले दलित शब्द का इस्तेमाल किया और अपवंचितों के सामाजिक और आर्थिक जीवन को परिभाषित करते हुए गुलाम भारत में सबके लिए शिक्षा के मार्ग को प्रशस्त किया।महात्मा ज्योतिबा राव फूले हों पेरियार रामास्वामी नायकर,संत गाडगे हों या आरक्षण के जनक छत्रपति शाहूजी जी महाराज, दक्षिण भारत की धरती पर जन्म लेने वाले अन्य महापुरुष,इन सबको उत्तर भारत की जनता के साथ देश दुनिया के सामाजिक और राजनीतिक पटल पर स्थान देने में मान्यवर कांशीराम और उनकी बहुजन क्रांति का विशेष योगदान है। मान्यवर कांशीराम साहब के साप्ताहिक पत्र बहुजन संगठक ने न केवल इन महापुरुषों के जीवन दर्शन को घर घर पहुंचाया है, बल्कि उनकी विचारधारा पर चलने वाले समाज कर्मियों की एक बड़ी फौज तैयार की है। अखंड क्रियाशील कार्यकर्ताओं को तैयार किया है, यही कार्यकर्ता अब डा अम्बेडकर के साथ महात्मा ज्योतिबा राव फूले, उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले की जयंती और निर्वाण दिवस मना रहे हैं।महात्मा ज्योतिबा राव फूले का जन्म 11अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ। पुणे और महाराष्ट्र ही उनका कर्म-क्षेत्र भी रहा।जब भारत में लड़कियों की शिक्षा अभिशाप मानी जाती थी, ऐसे समय में उन्होंने 1 जनवरी 1848को पुणे में बालिकाओं के लिए पहला स्कूल खोला और उस स्कूल की शिक्षिका अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को नियुक्त किया। एक ब्राह्मण मित्र की शादी में पुरोहितों और ब्राह्मण बारातियों के द्वारा अपमान की घटना ने उनका जीवन बदल दिया और उन्होंने अपवंचितों की शिक्षा और सेवा को अपने जीवन का मिशन बना लिया।माली जाति का यह नौजवान शादी में कैसे आ गया,इसे तो माला फूल देकर लौट जाना था –जातिवादी लोगों की यह बात फूले जी को कांटे की तरह जीवन भर चुभती रही। सत्यशोधक समाज के माध्यम से उन्होंने जीवन भर सामाजिक भेदभाव और अशिक्षा के विरुद्ध सामाजिक क्रांति की अलख जगाई। मृत्यु के पहले अपने अनुयायियों को आगे का काम सौंप कर दुनिया से नाता तोड़ा। भारत को डा अम्बेडकर के रूप में सामाजिक क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए एक नेतृत्व भी दिया।महात्मा ज्योतिबा फुले एक अच्छे लेखक और साहित्य सृजन कर्ता भी थे। उन्होंने एक दर्जन पुस्तकें लिखी हैं। तृतीय रत्न, गुलामगीरी और किसान का कोड़ा उनकी सबसे लोकप्रिय रचनाएं हैं।महात्मा ज्योतिबा फुले धर्म और जाति के नाम पर झगड़ों और जातीय भेदभाव को राष्ट्रीय एकता के लिए बाधक मानते थे, उन्होंने एक ऐसे परिवार की कल्पना की जो आदर्श हो , जहां सब लोग मिलकर काम करें।सबको रोटी,कपड़ा, मकान, शिक्षा, सुरक्षा की गारंटी हो, धार्मिक डकैतियां बंद हों।वे कहते थे -शिक्षा के अभाव में बुद्धि गई, बुद्धि के अभाव में नैतिकता गई, नैतिकता के अभाव में प्रगति गई, धनाभाव के कारण शूद्रों का विनाश हुआ, सभी दुःखों का कारण अविद्या है।
आज के दौर में जब देश में चारों तरफ हिंसा, नफ़रत,आतंक, धार्मिक अन्धविश्वास, कर्मकांड,दोहरी शिक्षा प्रणाली ,मंहगी शिक्षा का बोलबाला है, महात्मा ज्योतिबा राव फूले की शिक्षाएं और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।

यदि हर धर्म के लोग एक ही परिवार मे मिल जुल कर रहेंगे तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी। यदि सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर रहेंगे तो मतभेद की स्थिति नहीं बनेगी।

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