आनंद अग्निहोत्री /पारदर्श विकास न्यूज़ लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों ने आज राजधानी के एक होटल में हुई मीटिंग के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और ऊर्जा विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए बयान पर तीखी प्रक्रिया व्यक्त की है।
संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण की प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है। उन्होंने कहा की मुख्य सचिव का यह बयान उचित नहीं है कि बिना डरे बिना रुके निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है और किसी के दबाव के आगे नहीं झुकना है। उन्होंने कहा कि निजीकरण की प्रक्रिया में अब तक एक बार भी विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति,उत्तर प्रदेश या किसी भी संगठन के साथ कोई वार्ता नहीं की गई है। उल्टे विद्युत कर्मचारियों को डराने की बात हो रही है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक ढंग से विरोध प्रदर्शन और लखनऊ में रैली करना कोई डराने वाला कदम नहीं है।
उन्होंने कहा यदि बिजली के क्षेत्र में सबसे प्रमुख स्टेट होल्डर बिजली कर्मचारी संगठनों को बुलाया गया होता तो उड़ीसा , ग्रेटर नोएडा के तथा कथित रिफॉर्म की असलियत सामने आ जाती । उड़ीसा में 1998 में निजीकरण किया गया था। 2015 में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह विफल रहने और भारी भ्रष्टाचार के कारण निजीकरण के सभी लाइसेंस रद्द कर दिए थे। आज की मीटिंग में उड़ीसा के निजीकरण की सफलता की कहानी सुनाई जा रही है इससे ज्यादा बड़ा मजाक और कोई नहीं हो सकता।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि यदि मुख्य सचिव और ऊर्जा विभाग के आला अधिकारी निजीकरण के जरिए सुधारो के प्रति इतने आश्वस्त है तो विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के साथ सीधे वार्ता क्यों नहीं करते। संघर्ष समिति को भी अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि निजीकरण किसी भी प्रकार कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के हित में नहीं है। बिजली कर्मी निजीकरण को कदापि स्वीकार नहीं करेंगे और निजीकरण के विरोध में लोकतांत्रिक ढंग से आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाता।