संजीव भारती पारदर्शी विकास न्यूज़ अमेठी। गांवों में इस समय रबी की मुख्य फसल गेंहू की कटाई और मड़ाई का काम युद्धस्तर पर चल रहा है।मजदूरी बढ़ने और खेती में थ्रेशर और कम्बाइन मशीनों का उपयोग बढ़ने से कृषि उत्पादन लागत बढ़ गई है। परम्परागत खेती में लाभ न होने से तमाम किसानों ने व्यवसायिक खेती , दुग्ध उत्पादन और बागबानी का काम शुरू कर दिया है।
बुधवार को जंगल रामनगर की सिवान में खड़ी दोपहरी लगभग 2:30 बजे खेत में किसान गेहूं की मड़ाई करते देखे गए। बड़ी संख्या में किसान गेहूं के खेत में गेहूं की फसल को काटकर खेत में ही मड़ाई कर रहे हैं।बड़े किसान कंबाइन मशीन से गेहूं की फसल की कटाई करा रहें हैं। भूसा बनाने वाली मशीन ढूंढ रहे हैं।
कई किसानों ने बताया कि इस समय गेहूं की कटाई का काम तेजी से चल रहा है । जिसके चलते गांव में मजदूर नहीं मिल रहे हैं। मजबूरी में कंबाइन मशीन का सहारा लेना पड़ रहा है। मौसम का रुख भी बदला सा नजर आ रहा है। बुधवार को दिनभर आसमान में धुंधलापन बना रहा हर किसान अपनी फसलों को निपटाने में लगे हुए हैं। इस समय मड़ाई के लिए किसानों को₹1200 से लेकर₹1600 प्रति घंटे की दर से थ्रेसर मालिक को देना पड़ रहा है। गेंहू की मड़ाई के लिए किसानों को 20से 30रु प्रति मिनट की दर से थ्रेशिंग पर खर्च करना पड़ रहा है। कंबाइन मशीन मालिक भी एक बीघा गेंहू की कटाई के लिए 1500से1800रु वसूल रहे हैं।
परम्परागत खेती से लाभ नहीं
प्रगतिशील किसान शिव प्रसाद शुक्ल, राजेन्द्र, वासुदेव मौर्य, विजय बहादुर वर्मा आदि ने बताया कि गेंहू,धान की खेती में कोई लाभ नहीं रह गया। सिंचाई, सुरक्षा और कटाई , मड़ाई में काफी धन चला जाता है। परम्परागत खेती से अधिक लाभ सब्जी की खेती और पशुपालन में है। सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है।अनाज उत्पादन से अधिक लाभ सब्जियां उगाने और बागबानी में है। बागबानी में चार पांच साल तक ही अधिक मेहनत होती है। उसके बाद थोड़ा सावधानी बरतने से लाभ ही लाभ होता है। अरहर और चना ,मटर ,मसूढ की खेती का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है।नील गाय और अवारा पशुओं से फसलों को बचाना मुश्किल हो रहा है।