दलित शूरवीरों और वीरांगनाओं के बलिदान से भरा पड़ा है भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास

5अप्रैल को वीरांगना झलकारी बाई कोरी का बलिदान दिवस मनाने की तैयारी को कबीर आश्रम में हुई बैठक

बलिदान दिवस पर सरकार से सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग

संजीव भारती /पारदर्शी विकास न्यूज़ अमेठी। 1857के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई कोरी का 168वां बलिदान दिवस मनाने के लिए रविवार को कबीर आश्रम मुंशीगंज में सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक हुई। बैठक में पांच अप्रैल को चौरसिया मैरिज लान गौरीगंज में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया गया। बैठक में झांसी के महासंग्राम में वीरांगना झलकारी बाई कोरी के परिवार के बलिदान पर विस्तार से चर्चा हुई। कार्यक्रम के आयोजन के सम्बन्ध में व्यवस्था और स्वागत समितियों का गठन किया गया।
बसपा के पूर्व जिला अध्यक्ष सुरेश कमल ने कहा कि झलकारी बाई का जीवन दर्शन ‌भारतीय इतिहास की एक कटु सच्चाई है। झलकारी बाई लम्बे समय तक मनुवादी इतिहासकारों की भेदभावपूर्ण लेखनी की शिकार रही है।बामसेफ के जिला संयोजक संजीव भारती ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास दलित शूरवीरों और वीरांगनाओं के बलिदान से भरा पड़ा है। तत्कालीन इतिहासकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया। आजादी के बाद बहुजन समाज की जागरूकता के चलते 1980के दशक के बाद इतिहास लोगों के बीच पहुंचा है।

रामनाथ भारती ने बलिदान दिवस के कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया। अनिल बौद्ध ने कहा कि वीरांगना झलकारी बाई कोरी समाज के गौरव और सम्मान की प्रतीक है। कार्यक्रम संयोजक राम सजीवन कोरी ने समाज के शिक्षित कर्मचारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से तन,मन,धन से सहयोग की अपील की।बौद्धाचार्य हौंसिला प्रसाद ने वीरांगना झलकारी बाई के बलिदान दिवस पर सार्वजनिक अवकाश की मांग दोहराई। बैठक की अध्यक्षता सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक सिद्ध नाथ और संचालन सहसंयोजक संजय कुमार ने किया।
स्वागत और व्यवस्था समितियों में राजेश कुमार, त्रिभुवन दत्त, दीपक आर्य, विनोद कुमार एडवोकेट,राम बरन कोरी, ललित कुमार,राम शंकर दानी, पूर्व प्रधान सुंदर लाल, ललित कुमार, अवधेश बौद्ध, अनिल बौद्ध, केश कुमारी, रामशंकर ‌आदि को जिम्मेदारी सौंपी गई है। बैठक को बसपा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राम फल फौजी, डॉ कालिका गौतम, जमुना प्रसाद, डॉ रमेश गौतम, सुनील कुमार , प्रताप कोरी, अनिल कोरी बौद्ध आदि ने संबोधित किया।

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